मीडिया का गिरता स्तर, जिम्मेदार कौन ? चिंतन जरूरी |
मीडिया का गिरता स्तर, जिम्मेदार कौन ? चिंतन जरूरी है (अनिल सक्सेना/ललकार) आज कोई भी हिंदुस्तानी अपनी राय बेबाकी से रख सकता है और सोशल मीडिया में रख भी रहा है। कुछ लोगों के द्वारा देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक को कुछ भी बोला जा रहा है। देश में यह बोलने की आजादी ही तो है। अब सवाल यह है कि इससे ज्यादा आजादी और क्या चाहिए । कुछ जागरूक लोगों ने अपने यू टयूब चैनल बना लिए है तो कुछ सीधे ही अपनी बात कह रहें है। सबसे बड़ी बात यह है कि अखबार में तो अगले दिन खबर आएगी और एक सीमित क्षेत्र में ही रह जाएगी लेकिन सोशल प्लेटफार्म पर आई खबर कुछ ही समय में देश-विदेश के कई हिस्सों तक पहुंच जाती है। यह सोशल मीडिया की क्रांति ही है लेकिन यहां समस्या यह भी है कि कोनसी खबर सही है और कोनसी खबर गलत है, कई बार इसकी जानकारी ही नही मिल पाती है। द हिंदू ग्रुप के निदेशक एन राम ने ‘पत्रकारिता और सिनेमा का अपराधीकरण‘ विषय पर आयोजित लाइव लाॅ के वेबिनार मंे कुछ टीवी चैनल के बारें मंे कहा कि हमे इनकी निंदा करनी चाहिए । उन्होने यह भी कहा कि अब भी कई ऐसी जगह है जहां आप अपने सशक्त विचार को व्यक्त कर सकते है , सरकार के कामों की कड़ी निंदा कर सकते है, न्यायपालिका की , पुलिस की आलोचना कर सकतें है। वे कहतें है कि कानून में कई फाॅल्ट लाइनें है, जिसका सत्ता अपनी चालाकी से इस्तेमाल करता और ये न्यायपालिका की विफलता पर्याप्त रूप से संरक्षित करने में विफल रहते है। बीबीसी के अनुसार उन्होने यह भी कहा कि ‘हाल के दिनों में कई पत्रकारों की गिरफ्तारी और उन पर अपराधिक मामलों को दर्ज करना , हमारे संविधान की अपूर्ण पंक्तियों को उजागर और चैड़ा कर चुका है।‘ निदेशक एन राम का कहना काफी हद तक सही है लेकिन यह भी सच है कि आज न्यूज चैनल्स पर लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है और धीरे-धीरे अब प्रिंट मीडिया पर भी इसका असर दिखाई देने लगा है। मीडिया संस्थानांे को गोदी मीडिया और पता नही किन-किन नामों से पुकारा जाने लगा है। लोगों की यह मंशा बनती जा रही है कि अखबारों और न्यूज चैनल पर विज्ञापन देने के बाद आप कोई भी खबर चलवा सकते है। एक समय था जब आजादी दिलाने के लिए अखबार जन्म लेते थे और मिशन पत्रकारिता का वे जीता जागता सबूत हुआ करते थे। आजादी के बाद का सबसे बड़ा सच तो यह भी था कि अखबार ही सत्ता का मजबूत विपक्ष हुआ करते थे लेकिन सात दशक के बाद क्या अब यह कहना पूरी तरह सही हो सकता है ? सवाल यह है कि क्या मीडिया का स्तर गिर रहा है और स्तर गिर रहा है तो इसका जिम्मेदार कौन है ? अब हम पत्रकारों, साहित्यकारों, लेखकों और जागरूक लोगों को चिंतन करना जरूरी है कि ऐसा क्यो हो रहा है और इस बात की चर्चा राजस्थान मीडिया एक्शन फोरम के द्वारा 20 फरवरी को जयपुर के होटल अशोका में की जा रही है । इसके बाद प्रदेश के कई हिस्सों में इस विषय पर चर्चा कराने की योजना है । देखतें है इन चर्चाओं का असर पत्रकारांे, मीडिया संस्थानों और मीडिया के गिरते स्तर के कारकों पर कितना होता है या फिर होता ही नही है। प्रयास जारी है कभी तो असर होगा इसी आशा के साथ । (Since 1949 ललकार) |
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